संबंधों का धर्म शास्त्र : अनकही और अनसुलझी भावनाओं को सुलझाने का प्रयास

० समीक्षक : 
सुरेखा शर्मा ० पुस्तक : संबंधों का धर्म शास्त्र ( उपन्यास ) ० लेखिका : डाॅ यति शर्मा ० प्रकाशक : लिटिल बर्ड पब्लिकेशंस ० प्रथम संस्करण-2025 ० पृष्ठ संख्या -152 ० मूल्य -250
"प्रेम में अग्नि है जिसमें पाप और ताप जलकर भस्म हो जाते हैं। प्रेम की अग्नि में अपने मन,कर्म और वचन को पवित्र करना ही एक विवाहिता का कर्तव्य होता है और एक पत्नी प्रेम के पवित्र सागर में डुबकियाँ लगाकर अगर मधुरता से रिश्तों को संजोए तो नि:संदेह घर स्वर्ग बन जाता है। " लेकिन यहां तो स्थिति इसके विपरीत है। ऐसी विपरीत स्थितियों से उपन्यास के नायक को किस तरह से जूझना पड़ता है यही इस उपन्यास में वर्णित किया गया है ।

उपरलिखित पंक्तियाँ 'साहित्य श्री' सम्मान व अनेक सम्मानों से सम्मानित वरिष्ठ साहित्कार डाॅ• यति शर्मा द्वारा लिखित 'सम्बन्धों का धर्मशास्त्र ' उपन्यास से हैं। इससे पूर्व भी उनके चार कहानी संग्रह, काव्य संग्रह व उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं।किसी ने ठीक ही कहा है कि 'मनुष्य जितना सामाजिक प्राणी है उससे कहीं अधिक एक जटिल प्राणी भी है जिसे समझना अत्यंत कठिन है । किसी को समझना इतना आसान नहीं जितना हम उसे समझने का दावा करते हैं। वही हमारी समझ शक्ति से बाहर निकलता है । उपन्यास की विषयवस्तु दाम्पत्य जीवन पर आधारित है।

लेखिका ने इस उपन्यास के माध्यम से उस यथार्थ की ओर संकेत किया है जिसकी तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता।यह मध्यमवर्गीय परिवार की कथा है, जिसमें टूटते- बिखरते सम्बन्धों और विश्वासों को गहराई से देखने की कोशिश की गई है। उपन्यास की कहानी ऐसे ही स्त्री -पुरुष अर्थात् पति-पत्नी के बीच के सम्बन्धों के इर्द-गिर्द घूमती है।जो विवाह के बाद एक साथ रहते हुए भी एक -दूसरे को समझ नहीं पाते। उपन्यास में दो परिवारों की महिलाओं को मानसिक बिमारी से ग्रस्त दिखाया गया है। जिसका प्रभाव अन्य पात्रों भी पड़ता है । जैसा कि पहले ही बताया गया है कि मनुष्य सामाजिक प्राणी है।

 वह परिवार से, समाज से अलग नहीं रह सकता । चाहे इसके लिए उसे कितने ही मुखौटे क्यों न लगाने पड़ें । यही 'निगम' के साथ होता रहा है।बाहर से उसकी मन:स्थति का अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता ।
नायक निगम एक ऐसे सुसंस्कृत माता - पिता का बेटा जो संस्कृत के विद्वान व अध्यापक थे। निगम सुलझे विचार , विनम्र, शांत स्वभाव आत्मनिर्भर, महिलाओं का आदर -सम्मान करने वाला, व असहाय लोगों की सहायता करना अपना कर्तव्य समझता है।

 लेकिन उसकी पत्नी 'स्वरा' बिल्कुल विपरीत परिस्थितियों में पली- बढ़ी। जो प्रेम की गहराई को न समझकर हर रिश्ते में स्वार्थ व नकारात्मक सोच रखती है ।यहां तक कि अपने पति के प्रेम को भी नहीं समझ सकी। अपने पति पर शक करने की आदत ने उसे स्वयं को ही ऐसे दलदल में फंसा लिया था कि अपनी घर गृहस्थी को तबाह करने में भी हिचकिचाहट नहीं हुई । किसी ने सच ही कहा है, मन में उपजे प्रेम और शक के बीज सरलता से नहीं उखाड़े जा सकते ।

 ऐसे ही शक के बीज स्वरा के मन में पनपने लगे थे। निगम के अपनी पर्सनल सेक्रेट्री रूहानी के पिता के आपरेशन के लिए आर्थिक सहायता करने पर स्वरा ऑफिस में जाकर अपने पति निगम के साथ-साथ रूहानी को भी बहुत अपमानित करती है।अपने शक को अपनी कल्पनाओं में ऐसे दृश्य देखने लगती है कि उसे सब सच लगने लगता है।शक का दायरा इतना बढ़ जाता है कि अपने ही पति को भिन्न- भिन्न तरीकों से प्रताड़ना देनी शुरू कर देती है।

 अपनी सीमाओं को पार कर कभी निगम के बिस्तर पर चींटियां छोड़ देना तो कभी उस पर गर्म चाय का कप उड़ेल देना , खाने में मिर्ची डाल देना , पानी मांगने पर हाथ में न देकर पानी का गिलास उसके ही सामने उड़ेल देना। एक्सीडेन्ट होने के बाद भी उसकी प्रताड़ना कम नहीं होती। सदियों से अक्सर यही सुनने में आता रहा है कि औरत को पुरुष प्रताड़ित करता है , अत्याचार करता है ,जलाकर मार देता है यंत्रणा देता है।  जहाँ देखो नारी विमर्श की बात होती है।समाज की यही धारणा है कि नारी दया की पात्र है। परन्तु यह कृति इसका अपवाद है। और यहां स्थिति कुछ और ही बयां कर रही थी।

निस्संदेह मनुष्य यदि किसी उलझन में है तो उसके पीछे उसका अव्यवस्थित मन जिम्मेदार होता है। उसके मन पर उसका नियंत्रण नहीं होता। ऐसे अनियंत्रित मन वाले व्यक्तियों की भावनाओं का दूसरों द्वारा दोहन किया जाता है । भावनात्मक कमजोरी का फायदा उठाकर उसे और प्रताड़ित किया जाता है।इसलिए ऐसी स्थिति में सामने वाले के मन को पढ़ने और समझने की शक्ति के साथ -साथ उनके वास्तविक चरित्र में झांकने की आवश्यकता होती है , जो स्वरा में नहीं थी ।

 निगम अपने निस्वार्थ प्रेम व लगाव के वशीभूत स्वरा की ज्यादतियों को सहन करता रहा। उपन्यास में कुछ प्रसंग व घटनाएं अत्यंत मार्मिक दिल दहला देने वाली हैं कि कोई कल्पना भी नहीं कर सकता कि स्वरा एक महिला होकर अपने ही पति पर ऐसे दर्दनाक तरीकों से उसे शारीरिक, मानसिक, व्यवहारिक प्रताड़ना देती है कि एक बार पाठक भी आक्रोशित हो उठता है।उपन्यास की घटनाएं अपनी गतिशीलता से आगे बढ़ती हैं।कथा दो स्तरों पर गति पकड़ती है। पहला स्तर है जिस परिवार का नायक है निगम । परिवार में दो ही प्राणी हैं । और दूसरा है ' वीर ' , जिसके परिवार में वीर के पिता,बहन रुहानी और उसकी की पत्नी निष्ठा।

 इन चार प्राणियों के परिवार में कई गाँठें हैं, दुराव है। पारिवारिक स्नेह क्या होता है वे यह नहीं जान पाते । वीर अपने पिता व बहन से बहुत प्यार करता है पर अपनी पत्नी के सामने नहीं दिखा पाता । अपने दब्बू स्वभाव के कारण पिता और बहन को निष्ठा के शोषण व अत्याचार से नहीं बचा पाता। अपने त्रिया चरित्र के कारण अपने पति को कुछ भी पता नहीं चलने देती। पिता तो असमय ही अपनी बहू निष्ठा की प्रताड़नाओं का शिकार होकर दुनिया को छोड़कर चले गये लेकिन रूहानी को उनकी यातनाएँ सहनी पड़ी ।

उपन्यास की कथा उपकथा का दामन पकड़कर आगे बढ़ती चली है। उपन्यास प्रारंभ से ही कौतुहल बनाए रखता है।जिसमें पठनीयता का प्रवाह मानसिक जिज्ञासाओं के साथ-साथ चलता है। कहीं-कही आर्द्र संवेदनाएं भी मन को विचलित करती हैं। देखा जाए तो मानव जीवन में रिश्ते ही मूल आधार है। जो भावनाओं के आवेग में पलते -बढ़ते फलते-फूलते और गहरे होते चले जाते हैं। जिनके सहारे सभी बाधाओं को पार करते हुए हम सफलता को प्राप्त कर लेते हैं ।और कई बार नकारात्मक विचार और सोच सफलता में बाधक बन जाते हैं।

 रूहानी भी अपने जीवन में कुछ बढ़ा करना चाहती थी लेकिन निगम की पत्नी स्वरा और भाभी निष्ठा की सोच और उनके कृत्यों ने उसे नरक के गढ्ढे में धकेल दिया।यहां तक कि उस पर घिनौने इल्जाम लगाकर अपने ही घर से धक्के मारकर दर-बदर- की ठोकरें खाने के लिए मजबूर कर दिया। एक धनवान व्यक्ति हंसराज अपने स्वार्थ और गोद ली हुई बेटी की भलाई के लिए बेटी का अपहरण करवाता है तो उसकी जगह गुंडे लोग रूहानी का अपहरण कर लेते हैं। रूहानी उनके चंगुल में कितने ही दिनों तक तड़फती रही ।

 रूहानी के घर से चले जाने के बाद भाई वीर ने भी बहन के वियोग में अपने प्राण छोड दिए। कहते हैं कि दु:खों-कष्टों और संघर्षों से गुजरते हुए हर व्यक्ति के जीवन की एक रोचक कहानी कहीं न कहीं मोड़ ले लेती है। ऐसे ही कई मोड़ रुहानी की जिंदगी में आए। अपराधिक तत्वों के हाथ में पड़ने के बाद एक भले व्यक्ति के मिलने से जीवन की गाड़ी पटरी पर जैसे ही आगे बढ़ने लगती है फिर समाज के ठेकेदारों ने , परिवार ने उसे सुख से जीने नही दिया।यही बेकसूर रूहानी के साथ होता रहा।

समय अपनी गति से चलता है। समय रूपी साँप -सीढ़ी पर स्थितियाँ बदलने में समय तो लगता है पर बदलती अवश्य हैं। कहानी में किरदार भी बदल जाते हैं।कुछ नये पात्र जुड़ते गए। रूहानी की जगह अब ऑफिस में नेहा ने निगम की दूसरी सैक्रेटरी के रूप में ज्वाइन किया तो स्वरा के शक की सुईं अब नेहा पर घूमने लगी। स्वरा ने फोन पर नेहा को बहुत भला- बुरा कहा ।अपमानित किया। लेकिन नेहा क्वालीफाई मनोवैज्ञानिक थी जिसने स्वरा द्वारा किए गए अपमान को न सोचते हुए धीरे- स्वरा से दोस्ती बनाई और उसकी हिस्ट्री शीट भी तैयार की।

वह किन हालातों में अनाथालय पहुंची,माता -पिता के बूरे चरित्र व व्यवहार के कारण उसकी मानसिक स्थिति इस स्थिति पर क्यों पहुंची।सब कारण ढूंढ़ने के बाद मनोवैज्ञानिक तरीके से इलाज शुरु कर स्वरा द्वारा जलील होने पर भी अपने उद्देश्य में सफल होती है। यह तो सर्वविदित है कि इनसान जब मानसिक यातना से गुजर रहा होता है तब उसे तिनके का सहारा भी बहुत होता है। स्वरा और निगम के लिए नेहा ने ऐसा ही तिनका बन कर दिखाया। उपन्यास की कहानी हमें यह सोचने पर विवश करती है कि एक शक के कारण हमारे रिश्ते क्यों दरक रहे हैं ? नि:सन्देह निश्चित रूप से ऐसा व्यवहार परिवार के लिए घातक सिद्ध होता है। 

कहानी रिश्तों की गरिमा खत्म करने की स्थिति का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण भी करती है।आज के सामाजिक यथार्थ पर गंभीरता से प्रहार करती है। लेखिका ने कहीं भी उपन्यास को बोझिल नहीं होने दिया।
प्रख्यात चिंतक व आलोचक श्रद्धेय नामवर सिंह के अनुसार 'उपन्यास केवल भावाभिव्यक्ति का माध्यम नहीं रहा है, बल्कि वह गहरे शोध,जानकारियों के संकलन व जीवनानुभवों के आधार पर लिखा जाता है। ' यह उपन्यास भी लीक से हटकर एक गंभीर विषय को लेकर लिखा गया है। प्रारंभ में यह एक स्त्री-पुरुष की समस्या दृष्टिगत होती है लेकिन यह पूरे समाज की समस्या है। इसमें स्त्री के कारण उससे जुड़े पुरुष जिस पीड़ा से गुजरते हैं वह अवर्णनीय है।

उपन्यास का अंत सुखद एहसास कराता है। अभी उपन्यास में बहुत कुछ है जिसका आनन्द तो पाठक स्वयं पढ़कर ही उठा सकते हैं।उपन्यास लिखना एक श्रमसाध्य कार्य है। उपन्यास की भाषा सरल-सहज संप्रेषणीय है। उपन्यास में परिष्कृत भाषा का प्रयोग हुआ है। कथ्य और शिल्प दोनों दृष्टियों से लेखिका की यह एक विशिष्ट उपलब्धि है। निस्संदेह उपन्यास का अंतिम दृश्य स्नेह व रिश्तों की सुहानी ऊष्मा की आभा में प्रकाशमान है। उपन्यास इक्कीसवीं सदी की दहलीज पर खड़े युवक-युवतियों की मानसिकता को गहराई से छूने में समर्थ है। लेखिका डाॅ•यति शर्मा को हार्दिक बधाई उपन्यास को बहुत पाठक मिलेंगे ऐसा विश्वास है।

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