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ग़ज़ल

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० मुहम्मद नासिर ०  ज़माना अपनी कड़ाई को खूब भरता रहा नदी के पास खड़ा पेड़ प्यासा मरता रहा। ये फैसला कभी कर ना सका कि जाऊँ किधर तमाम उम्र यूँ ही बे मक़ाम फिरता रहा। वो मेरे साथ रहा उम्र भर मगर सब से मेरे मिज़ाज के शिकवे हज़ार करता रहा। तू अपनी ज़िद में कभी टूट कर नहीं बिखरा मैं आँसूओ से ख़ज़ाने को दिल से भरता रहा। घनी छाओं में बैठे हुए को कब ये खबर पिघलती धूप में साय बिना मैं चलता रहा।

बेटी हूँ मैं भी घर की

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o मुहम्मद नासिर o  नाज़ से पाली हुई बेटी शादी के बाद जब ससुराल जाती है तो वो पराई नहीं लगती है। शादी के बाद जब माईके आकर हाथ मुँह धोने के बाद सामने टंगे तोलिए के बजाय अपने बैग से छोटा सा रुमाल निकाल कर मुँह पोंछती है तो पराई लगती है। जब वो बावर्ची खाने के दरवाजे पर ना मालूम सी खड़ी हो जाती है। अंदर घुसने मे हिचकिचाती है तो पराई सी लगती है। जब मेज़ पर खाना लगने के बाद भी बर्तन खोल कर नहीं देखती तब प्राई लगने लगती है। जब बात बात पर गैर जरूरी क़हक़हा लगा कर खुश होने का नाटक करती है और जाते वक़्त "कब आयेगी " के जवाब में " देखो कब आना होता है कह कर जवाब देती है तो हमेशा के लिए पराई हो गई। ऐसा लगता है। लेकिन दरवाजे से बाहर निकल कर गाड़ी में बैठते वक़्त चुपके से अपनी आँखें खुश्क करने की कोशिश करती है तो सारा परायापन एक झटके में कही खो जाता है और कलेजा कट कर मुँह को आ जाता है। खामोशी की ज़बान में आँसू के भीगे कलम से दिल के ज़खमों से साफ लिखती है " हिस्सा नहीं चाहिए भाई मैका मेरा सजाय रखना। कुछ ना देना मुझे। सिर्फ मुहब्बत बरकरार रखना। बाप के इस घर में मेरी यादों को सजाय रखना...

भूल जाता हूँ

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o मुहम्मद नासिर o  लिखने बेठूं तो भूल जाता हूँ कैसी हालत में खुद को पाता हूँ तेरा पैकर मेरी निगाह में है तेरी सूरत भी मेरी चाह में है साथ तेरे गुज़ारे जो लम्हे वो मेरी सांस में बस्ते। तेरी हर एक अदा का शेदाई कान में कहती आ के पुरवाई क्यों फँसाने को आम करता है जो ना अच्छा वो काम करता है। बात उसकी समझ में आने लगी प्यार की जोत जगमगाने लगी इसलिए ज़हन जब संवरता है और काग़ज़ को वो पकड़ता है हाथ में वो कलम भी लेता है लिखूं ये फैसला भी करता है। फिर भी सब कुछ मैं भूल जाता हूँ ज़िक्र तेरा जो लिखने आता हूँ।

हाथ दूरी से मिलाना

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० मुहम्मद नासिर ०  याद आती बारहा वो जिंदगी जिस मे सच्चा हर कोई इंसान था ना कोई धोका था दिल में ना कोई हीजान था। रिश्ते दारी सीधी साधी प्यार की मोहताज थी चाहतों की दुनिया दारी रूहों की सरताज थी। ऐसे भी थे लोग जिन को फिक्र हर इंसान की थी। दुख मे देना साथ सब का उनकी ये पहचान थी। कोई अपना ना पराया ऐसा सब का साथ था गम खुशी मे साथ देता ऐसा सब का हाथ था। रंग ओ मजहब और नसल का कोई भी चक्कर ना था। प्यार की डोरी में बंध कर लोटता अक्सर नहीं था। अब हवा कैसी चली है ? खिलती कोई ना कली है। प्यार एक धोका बना है। अब ज़माने ने सुना है। कहता है कोई दीवाना " हाथ दूरी से मिलाना"

याद रखो

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o मुहम्मद नासिर o आधे अधूरे मन से क्यों करते जाते अपने काम। दिल को अपने खुद लो थाम ले के उस मालिक का नाम अपने रास्ते निकल पड़ो, मुश्किल से बिल्कुल ना डरो, इस से पहले ये समझो, दिल को क़ाबू में रखो। आधे अधूरे मन के काम रहते हैं अकसर नाकाम। खुद पे भरोसा रखो क़ायम पूरे मन से कर लो काम पूरे होंगें सब अरमान आज हक़ीक़त को पहचान। तेरी महनत रंग लायेगी दुनिया को वो बतलाएगी। मेहनत करने वालों की हार कभी ना होती है थक के रुक जाने वालों से क़िस्मत खुश ना होती है।

ग़ज़ल

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o मुहम्मद नासिर o  बैठ के तन्हाई में यूँ घर के अंदर आंसुओं को इस तरह बर्बाद ना कर। रख यक़ीं अल्लाह पर, उसके जहाँ में एक बंद होने पे खुलता दुसरा दर। मुझ को कहता डूब जाने के लिए दिल की गहराई मे तु भी तो उतर। है तबियत ठीक तो हमदम मेरे आज कल आते नहीं हो क्यों नज़र? रोना हंसना गम खुशी या दर्द हो जिंदगी हर हाल में होगी गुज़र। हो रहूँ बर्बाद मैं इस के लिए तुम ने छोड़ी है कहाँ कोई कसर? तुझ से लड़ने के लिए ए जिंदगी कस रहा हूँ आज मैं अपनी कमर। धोके अपने दे रहे थे रात दिन आज नासिर को हुई इसकी खबर।

ग़ज़ल

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o मुहम्मद नासिर o  तू मेरी याददाशत में पहले पहल रहा फिर यूँ  हुआ कि तू कहीं माज़ी में  खो गया। था कामयाब तो मैं सभी का दुलार था ना कामयाब जब से हुआ तन्हा रह गया। खामोशी मेरी करती रही है बयान सब कहने को कुछ नहीं कभी लफ़्ज़ों में कह सका।  मैंने जला दिया तेरी नफरत का हर वर्क़  तू चाहता है क्या मुझे एक बार तो बता। मेहनत ही कामयाबी के ताले की कुंजी है नासिर ने आज सारे जहाँ को बता दिया।

बिखरा ख्याल

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o मुहम्मद नासिर o  कभी रास्तों की तलाश में कभी मंज़िलों की तलाश में  यूँ ही चलते चलते गुमान हुआ। ये जो सुबह शाम की दौड़ है जहाँ जीतने की ही होड़ है। जहाँ रात दिन ना करार है। जहाँ नाम को भी ना बाहर है। क्योंकि जो भी मिलता वो कम लगे जहाँ रोज़ बढ़ते हैं फासले। जहाँ दर्द दिल की क़दर नहीं जहाँ खुद को खुद की खबर नहीं जहाँ धोका देते हैं खुद को हम जहाँ फ़िक्र माआश में रहते गुम जहाँ रिश्तों में भी फरेब है कोई दूर कोई क़रीब है। ये अजीब तर्ज़ मयार है कभी जीत है कभी हार है। जो है पास माल व ज़र तो फिर ये जबान रखती है कुछ असर। मुझे हो रही है घुटन यहाँ क्यों ना छोड़ जाऊँ में ये जहाँ रहूँ उस जगह जहाँ तन्हा मैं कोई दूसरा ना हो दरमियाँ ना किसी का धोका मुझे मिले ना ही ज़ख़्म कोई मेरा खुले। ये अजीब मेरा ख्याल है जहाँ छोड़ने का ख्याल है। ये इरादा सारा बदल दिया जो भी दर्द है वो निगल लिया। फिर रास्तों पे मैं चल दिया मेरी जिंदगी तेरा शुक्रिया।

बंद दरवाजे

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o  मुहम्मद नासिर o  बंद दरवाज़ो के पीछे छुपीं ना जाने कितनी कहानियाँ तंहाइयों को अंधेरों में समाये बैठी हैं। ज़ख़्म दिल के छुपाए बैठी हैं। अपनी लाशें उठाऐ बैठी हैं। कोई इनको बदल नहीं सकता बिखरा आँचल संभल नहीं सकता।

मुझे लम्हा कोई उधार दे

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o मुहम्मद नासिर o  यूं ही सुबह शाम की दौड़ में मैं तमाम उम्र लगा रहा। इसे पा लूं उसको मैं जीत लूँ इन्ही उल्फ़तों में घिरा रहा। मगर आज शाम ए हयात में मुझे लग रहा मैं ना जी सका जिसे समझा हासिल ए वक़्त है वो तो एक धोखा ए जान है। अब इलतिजा मेरी सुन ज़रा मुझे इस तरह से ना ले के जा मैं भी जिंदगी को जियूँ ज़रा मुझे तुझ से इतनी है इल्तिज़ा । कोई ख्वाब मेरा सँवार दे मुझे लम्हा कोई उधार दे।

तलाश ए सहर

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०  मुहम्मद नासिर ०  मैं किसी खामोश वादी में तलाश ए सहर की खातिर भटकता फिर रहा हूँ गिर रहा हूँ चल रहा हूँ चल रहा हूँ गिर रहा हूँ। खामोशी रास्ते की मुझ को खौफ से ताकती है शायद मैं किसी अंधे नगर का एक वासी हूँ जो अपनी तरिकी रास्ते में इसको छोड़ कर ज़ुल्मात में खो जाऊंगा फिर ना वापस आऊंगा। और मैं इस रोशनी से डर रहा हूँ ये मुझे बहका ना दे मेरे रास्ते से मुझे भटका ना दे।

ग़ज़ल

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०  मुहम्मद नासिर ०  रस्ता रोके कौन सी मुश्किल नहीं थक के बैठा मैं किसी मंज़िल नहीं क़त्ल कर इंसानियत की रूह का दिख रहा क़ातिल मगर क़ातिल नहीं खूबी हर एक तुझ में फिर ना जाने क्यों क्यों समझता तू किसी क़ाबिल नहीं दिल के ज़ख़्मों का लगाने पर हिसाब कह नहीं सकता कि मैं घायल नहीं सोचता नासिर खड़ा तन्हाई में  जिंदगी का ये मेरी हासिल नहीं

माँ

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० मुहम्मद नासिर ०  बेटे ने बीवी के कहने पर माँ को बुरी तरह पीटा। माँ रोती हुई थाने पहुंची। थानेदार से बोली। " मेरे ज़ालिम बेटे को जिस ने मुझे इस बे दर्दी से पीटा उसे बुलाओ और मेरे सामने मार लगाओ ताके मुझे चैन मिले" थानेदार गुरराया। बेटे को थाने मे बुलाया। बूड़िया के सामने मुर्गा बनाया और एक जोरदार डंडा कमर पर लगाया। डंडा पड़ते ही बेटा दर्द से चिल्लाया माँ की ममता को जोश आया। थानेदार ने जैसे ही डंडा उठाया माँ ने खुद को बेटे की पीट पर झुकाया और हाथ जोड़ कर फरमाया। " थानेदार साहब, मेरे बेटे को माफ कर दो! "

यक़ीन

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० मुहम्मद नासिर ०  मैं दौलत की कमी में देखता हूँ अपने हाथों की लकीरें और याद करता हूँ माँ की दी हुई दुआएं "राजा बनेगा बेटा मेरा" मैं जानता हूँ मेरे हाथों की लकीरें और माँ की दुआएं कभी झूठी नहीं हो सकतीं। इसलिए आज भी पुर उम्मीद हूँ अधूरी  ख्वाहिशों  के साथ। 

The Roller Coaster Ride Of A Life" पुस्तक में मानवीय रिश्तों की पड़ताल

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० आशा पटेल ०  जयपुर | The Roller Coaster Ride Of A Life" पुस्तक में डॉ श्रीगोपाल काबरा ने मानवीय रिश्तों की पड़ताल इतनी खूबसूरती से की है आप उनकी लेखनी के कायल हो जायेंगे  | बहुआयामी प्रतिभा के धनी डॉ. श्रीगोपाल काबरा चिकित्सा के दो विषयों - एनाटॉमी और सर्जरी - में एमडी, विधि स्नातक की डिग्री और पत्रकारिता की स्नातकोत्तर डिग्री हासिल करने वाले पहले इन्सान है जो हिंदी, अंग्रेजी तथा राजस्थानी में कथा तथा कविता लेखन में भी सिद्ध हस्त है। राजस्थान प्रौढ़ शिक्षण समिति में उनकी सद्य प्रकाशित पुस्तक "The Roller Coaster Ride Of A Life" पर चर्चा का आयोजन किया गया जिसमे शहर की बुद्धिजीवी शक्सियत ने शिरकत की । जयपुर के सवाई मेडिकल कॉलेज से एनाटॉमी विभाग के अध्यक्ष के रूप में सेवा निवृत्त डॉ. काबरा के उन मेडिकल विद्यार्थियों ने जो खुद अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं, ने पुस्तक के उन हिस्सों पर चर्चा की जो उनके चिकित्सा, शिक्षा तथा मेडिकल नैतिकता व मरीज-चिकित्सक संबंधों पर हैं तो साहित्य तथा लोक संस्कृति के अध्येताओं ने इस पुस्तक में अनोखा गद्य माना |  जाने-माने लेखक और समीक्षक डॉ. दुर्गाप...

संबंधों का धर्म शास्त्र : अनकही और अनसुलझी भावनाओं को सुलझाने का प्रयास

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० समीक्षक :  सुरेखा शर्मा  ० पुस्तक :  संबंधों का धर्म शास्त्र ( उपन्यास ) ० लेखिका : डाॅ यति शर्मा ०  प्रकाशक : लिटिल बर्ड पब्लिकेशंस  ० प्रथम संस्करण -2025 ० पृष्ठ संख्या -152 ० मूल्य - 250 ₹ "प्रेम में अग्नि है जिसमें पाप और ताप जलकर भस्म हो जाते हैं। प्रेम की अग्नि में अपने मन,कर्म और वचन को पवित्र करना ही एक विवाहिता का कर्तव्य होता है और एक पत्नी प्रेम के पवित्र सागर में डुबकियाँ लगाकर अगर मधुरता से रिश्तों को संजोए तो नि:संदेह घर स्वर्ग बन जाता है। " लेकिन यहां तो स्थिति इसके विपरीत है। ऐसी विपरीत स्थितियों से उपन्यास के नायक को किस तरह से जूझना पड़ता है यही इस उपन्यास में वर्णित किया गया है । उपरलिखित पंक्तियाँ 'साहित्य श्री' सम्मान व अनेक सम्मानों से सम्मानित वरिष्ठ साहित्कार डाॅ• यति शर्मा द्वारा लिखित 'सम्बन्धों का धर्मशास्त्र ' उपन्यास से हैं। इससे पूर्व भी उनके चार कहानी संग्रह, काव्य संग्रह व उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं।किसी ने ठीक ही कहा है कि 'मनुष्य जितना सामाजिक प्राणी है उससे कहीं अधिक एक जटिल प्राणी भी है जिसे समझना अत्यंत कठिन है ...

गंगा : एक दिव्य स्वरूप‘‘ पुस्तक का लोकार्पण

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० आशा पटेल ०  जयपुर। राजस्थान इंटरनेशनल सेंटर में ‘गंगाः एक दिव्य स्वरूप’ नामक पुस्तक का लोकार्पण समारोह हुआ। यह अवसर भावनात्मक और आध्यात्मिक यात्रा का प्रतीक बना, जिसमें कमला -गिरीश पोद्दार ने अपने पितृ पुरुष स्व. मिर्जामल पोद्दार, स्व. प्रभासचन्द्र पोद्दार एवं स्व. श्रीमती राजेश्वरी देवी पोद्दार को इस पुस्तक के माध्यम से श्रद्धांजलि अर्पित की। इस कार्यक्रम का आयोजन वीण् केण् पोद्दार फॉउंडेशन के अंतर्गत किया गया , वीण् केण पोद्दार फाउंडेशन के माध्यम से आर्ट कल्चर और लिटरेचर से जुड़े विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करवाया जाता है और फाउंडेशन मैरिट में आये छात्रों को स्कॉलरशिप भी देता है। पोद्दार परिवार की कुलदेवी मां गंगा को समर्पित यह पुस्तक न केवल गंगा के दिव्य स्वरूप, सौंदर्य और महत्व का वर्णन करती है, बल्कि एक गहन आध्यात्मिक अनुभव भी प्रस्तुत करती है। पुस्तक एक महत्वपूर्ण नैतिक संदेश भी देती है कि नदियाँ केवल जलधाराएं नहीं, बल्कि जीवन की धारा हैं, जिन्हें स्वच्छ, सुरक्षित और सम्मानित रखना हम सभी का सामूहिक उत्तरदायित्व है। इस अवसर पर उज्जैन से आए लाइफ मैनेजमेंट गुरु पंडित विजय...

पुस्तक : "एकांतवास में ज़िंदगी" संवेदनशील यथार्थवाद की अवधारणा से मानवता और कुरूपता का यथार्थ दर्शन

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□  समीक्षक : मनीषा खटाटे  □ पुस्तक "एकांतवास में ज़िंदगी"   □ लेखक : अशोक लव □ मूल्य : 180 रुपये  □ द्वितीय संस्करण 2024  □ प्रकाशक : सर्व भाषा ट्रस्ट , राजा पुरी मेन रोड ,नयी दिल्ली । संवेदनशील यथार्थवाद (Sensitive Realism) को मानवीय भावजगत और यथार्थ को आत्मबोध और करुणाबोध की दृष्टि से परिभाषित किया जा सकता है। इस अवधारणा में साहित्यिक अभिव्यक्ति को संवेदनशील चेतना के स्वरूप में आकृतिबद्ध किया जाता है या जीवन की यथार्थ स्तिथियों को पीड़ा, द्वंद्व, वेदना, कुरूपता, आंतरिक संवेदनाओं, भावनात्मक अंतर्विरोधों , अच्छाई- बुराई के संदर्भ में कथावस्तु की संरचना में , मानवीय भावजगत के आधार पर विकसित किया जाता है। संवेदनशील यथार्थवाद में आत्मबोध के आयाम से यथार्थ को देखने की विशिष्टता और स्पष्टता रहती है तथा संवेदनशीलता और करुणाबोध की दृष्टि से यथार्थ का कठोरता की धार पर विश्लेषण और आकलन करके कथासंसार रचा जाता है। जीवन का यथार्थ खोजना हो तो मानवीय संवेदनाओं में खोजना चाहिए। यही आधार है संवेदनशील यथार्थ का। अस्तित्ववाद (Existentialism) और यथार्थवाद (Realism) समकालीन कथात्मक स...

वरिष्ठ लेखिका डॉ.कृष्णा सक्सेना का लघु कथा संग्रह ‘फ्लावर्स ब्लूम’ का विमोचन

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० संवाददाता द्वारा ०  डॉ. सक्सेना द्वारा लिखी गई प्रत्येक पुस्तक उनके विविध, समृद्ध जीवन और भावनात्मक अनुभवों का प्रमाण है। ये सरल लघु कहानियाँ समय की सीमाओं को लाँघती हैं और हमें हमारे जीवन, मूल्यों और कार्यों पर चिंतन करने में मदद करती हैं।  नई दिल्ली : वरिष्ठ लेखिका डॉ. कृष्णा सक्सेना की नई पुस्तक ‘फ्लावर्स ब्लूम’ का विमोचन, पद्मश्री डॉ. कल्याण बनर्जी के हाथों हुआ। ‘फ्लावर्स ब्लूम’ कई सरल और मार्मिक लघु कहानियों का संग्रह है, जो मानवीय मूल्यों को सामने लाती हैं। पुस्तक की लेखन शैली सरल है और साथ ही यह पाठकों को चिंतन, और जागरूकता के साथ जीवन जीने के लिए प्रेरित करती है। कई पुस्तकों की लेखिका डॉ. कृष्णा 1955 में उत्तर प्रदेश से पीएचडी डिग्री प्राप्त करने वाली पहली महिला उम्मीदवार थीं। इस अवसर पर डॉ. कृष्णा सक्सेना ने कहा, “कहानियों में दिल को छू लेने वाली ताकत होती है। हमारे वेद भी कहानियों के माध्यम से ही बोलते हैं। मैं आशा करती हूँ कि यह पुस्तक पाठकों के भीतर उस कोमल आवाज को जाग्रत् करेगी, जो अंतःकरण, करुणा और स्पष्टता की आवाज है। यदि यह पुस्तक पाठकों को रुक कर चिंतन करने,...

स्व पुष्पा गोस्वामी की पुस्तक मरुधरा के मोती का लोकार्पण

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० आशा पटेल ०  जयपुर । जयपुर के झालाना क्षेत्र में स्थित राजस्थान इंटरनेशनल सेंटर के सभागार में स्मृति शेष पुष्पा गोस्वामी की आख़िरी कृति - मरुधरा के मोती का लोकार्पण किया गया। समारोह के मुख्य अतिथि विधायक डॉ गोपाल शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि पूर्व शिक्षा मंत्री डॉ. बीडी कल्ला थे। कार्यक्रम के अध्यक्ष और आयोजक भारतीय विद्या मंदिर कोलकाता के अध्यक्ष विट्ठल दास मूंधड़ा थे। पुष्टिमार्ग के आचार्य प्रथमेश मिलन गोस्वामी और वैचारिकी के संपादक डॉ बाबू लाल शर्मा भी मंचासीन रहे। कार्यक्रम का संचालन व्यंग्यकार प्रभात गोस्वामी ने किया। पुष्पा जी ने अपनी इस कृति में राजस्थान की विभिन्न क्षेत्रों में असाधारण उत्कृष्ट 42 हस्तियों पर साक्षात्कार आधारित लेख शामिल किये हैं। पुस्तक की प्रस्तावना साहित्यकार और पत्रकार अशोक आत्रेय ने लिखी है। ये हस्तियां संस्कृति , साहित्य , कला , संगीत , पत्रकारिता और अकादमिक क्षेत्र के सुपरिचित नाम हैं। तैलंग समाज से रमानाथ शास्त्री , कलानाथ शास्त्री , पंडित विश्व मोहन भट्ट , हेमंत शेष , पंडित लक्ष्मण भट्ट तैलंग , बृजेन्द्र रेही , आरबी गौतम ,डॉ मधु भट्...