बंद दरवाजे

मुहम्मद नासिर
बंद दरवाज़ो के पीछे छुपीं
ना जाने कितनी कहानियाँ
तंहाइयों को अंधेरों में
समाये बैठी हैं।

ज़ख़्म दिल के छुपाए
बैठी हैं।
अपनी लाशें
उठाऐ बैठी हैं।

कोई इनको
बदल नहीं सकता
बिखरा आँचल
संभल नहीं सकता।

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