हाथ दूरी से मिलाना

मुहम्मद नासिर ० 
याद आती बारहा वो जिंदगी
जिस मे सच्चा हर कोई इंसान था
ना कोई धोका था दिल में
ना कोई हीजान था।

रिश्ते दारी सीधी साधी
प्यार की मोहताज थी
चाहतों की दुनिया दारी
रूहों की सरताज थी।

ऐसे भी थे लोग जिन को
फिक्र हर इंसान की थी।
दुख मे देना साथ सब का
उनकी ये पहचान थी।

कोई अपना ना पराया
ऐसा सब का साथ था
गम खुशी मे साथ देता
ऐसा सब का हाथ था।

रंग ओ मजहब और नसल का
कोई भी चक्कर ना था।
प्यार की डोरी में बंध कर
लोटता अक्सर नहीं था।

अब हवा कैसी चली है ?
खिलती कोई ना कली है।
प्यार एक धोका बना है।
अब ज़माने ने सुना है।

कहता है कोई दीवाना
" हाथ दूरी से मिलाना"

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