ग़ज़ल
० मुहम्मद नासिर ०
ले के इन बातों का कुछ भी ना असर
हो गए हो आप कितने बे खबर
आ रहा है दूर से तूफान इक
किस तरह से अब बचेगा यह शहर?
देखना है इस सफर के बाद मे
ले के जायेगा मुक़द्दर अब किधर ?
देखता हूँ उस पे मेरी बात का
हो रहा है थोडा थोडा सा असर!
रात के गहरे अंधेरे देख ले
मुस्कुराती आ गई फिर से सहर
गम खुशी के आते जाते खेल में
जिंदगी होती रही यूँ ही बसर
केसे बतलाएगा नासिर आज, कि
दिख रहा क्यों चाँद इतना बे असर
ले के इन बातों का कुछ भी ना असर
हो गए हो आप कितने बे खबर
आ रहा है दूर से तूफान इक
किस तरह से अब बचेगा यह शहर?
देखना है इस सफर के बाद मे
ले के जायेगा मुक़द्दर अब किधर ?
देखता हूँ उस पे मेरी बात का
हो रहा है थोडा थोडा सा असर!
रात के गहरे अंधेरे देख ले
मुस्कुराती आ गई फिर से सहर
गम खुशी के आते जाते खेल में
जिंदगी होती रही यूँ ही बसर
केसे बतलाएगा नासिर आज, कि
दिख रहा क्यों चाँद इतना बे असर
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