अहसास

० मुहम्मद नासिर ० 
आज मोहताज चार कंधों का
शान से जो जमीं पे चलता था
छोड़ कर यह जहान जायेंगें
यह कभी ना समझता था।

यही गफलत सभी पे छाई है
बे खुदी किस तरह से आई है
जानते सब हैं मौत आनी है
जान हर एक शेह की जानी है

फिर भी वो काम करते जाते हैं
जो दिलों को बहुत दुखाते हैं।
काश, अहसास जाग जाए तेरा
दिल का शैतान भाग जाए तेरा।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

"मुंशी प्रेमचंद के कथा -साहित्य का नारी -विमर्श"

गांधी जी का भारतीय साहित्य पर प्रभाव "

ऑल राज.विवि पेन्शनर्स महासंघ लामबंद सरकार के खिलाफ खोला मोर्चा

राजस्थान के सरकारी विश्वविद्यालयों के पेंशनर्स हुए लामबंद

वाणी का डिक्टेटर – कबीर

एक विद्यालय की सफलता की कहानी-बुनियादी सुविधाएँ व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए चर्चित

कोटद्वार के चिल्लरखाल रोड निर्माण समस्या को लेकर 230 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर दिल्ली पंहुचा पत्रकार