ऐसी कहानियां लिखें जो मनोरंजन करें: विपुल के.रावल

० योगेश भट्ट ० 
भोपाल। सिनेमा की विभिन्‍न विधाओं में लिखने वाले लेखक देश को देखने और समझने के बाद ही अलग-अलग विषयों का समावेश कहानियों में करते हैं। हमारे देश में कहानियों और उनके विषयों की कोई कमी नहीं है। समाज में अलग-अलग दौर में फिल्‍मों की कहानियां कैसे लिखी गई हैं, इसे पिछले अनेक दशकों की फिल्‍मों को देखकर समझा जा सकता है। यह विचार माखनलाल चतुर्वेदी राष्‍ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्‍वविद्यालय के 'अभ्‍युदय' में 'रुस्‍तम' तथा 'इकबाल' जैसी फिल्‍मों के पटकथा लेखक विपुल के. रावल ने व्‍यक्‍त की। 
रावल ने भारतीय फिल्म उद्योग और वैश्विक सिनेमा के विकास की यात्रा पर चर्चा करते हुए फिल्‍म लेखन के क्षेत्र में आ रहे महत्वपूर्ण बदलावों को रियल लाइफ से जुड़े विषयों की कहानियों के साथ प्रस्‍तुत करते हुए लेखन एवं तकनीक के अन्‍तरसम्‍बन्‍धों पर चर्चा की। वरिष्ठ पत्रकार अनंत विजय ने कहा कि फिल्मों की कहानियां हमारी भावनाएं ही होती हैं। अगर हम गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि सिनेमा की अधिकतर कहानियों में रामकथा की प्रेरणा होती है,
 क्‍योंकि रामकथा हमारे मन में रची-बसी है। उन्‍होंने कहा कि विभिन्‍न जन माध्‍यमों में आज फिल्‍म समीक्षा किसी फिल्म की व्‍याख्‍या बनकर रह गई है, उसमें विश्‍लेषण एवं विवेचना का अभाव स्‍पष्‍ट झलक रहा है। विद्यार्थियों को इसे समझना बहुत जरूरी है। फिल्म रिव्यू राइटिंग के लिए कहानी में डीप डाइव करना जरूरी है। उन्‍होंने बताया कि लोक की विराट जानकारी अगर हमें होगी तो बेहतरीन समीक्षाएं लिख सकेंगे।

 नेटवर्क 18 के वरिष्ठ संपादक डॉ. बृजेश कुमार सिंह ने कहा कि तीन दशक पहले प्रिंट रेडियो का दौर था। उस समय टीवी पर महज कुछ समाचार बुलेटिन आते थे। उन्होंने कहा कि वर्ष 2000 के बाद से जिस तरह डिजिटल का दौर शुरु हुआ उसमें प्रिंट मीडिया ने भी खुद को री-इन्वेंट किया और कन्वर्जेंस के हिसाब से खुद को अनुकूल किया। आज डिजिटल मीडिया तेजी से बढ़ रहा है और इसने दूसरे माध्यमों को कड़ी प्रतिस्पर्धा दी है। अपने संपादन में उन्होंने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से घबराने की जरूरत नहीं है। डिजिटल का बाजार बहुत बढ़़ेगा इसके साथ ओरिजिनल कंटेंट की मांग बढ़ेगी, अतःविद्यार्थी अपनी स्किल्स को बेहतर करने पर ध्यान दें।

 मुख्य वक्ता वरिष्ठ पत्रकार बाल कृष्ण ने मीडिया की विश्वसनीयता और ब्रॉडकास्टिंग पर बताया कि किस तरह गलत सूचनाओं ने मीडिया में फैक्ट चैकिंग की मांग बढ़ाई है। उन्होंने कहा कि किस तरह डिजिटल फ्रॉड देश भर में बढ़ रहे हैं। उन्होंने मीडिया में विजुअल इन्वेस्टिगेशन और फैक्ट चेकिंग पर बात करते हुए युवा तकनीक के साथ जुड़े रहें। इस अवसर पर विश्वविद्यालय की पूर्व छात्रा एवं एनडीटीवी की एंकर अदिति राजपूत ने कहा कि मीडिया आज एक शक्तिशाली उपकरण है इसमें समाज को परिवर्तन करने की शक्ति है पर निश्चित तौर पर इसके कुछ उत्तरदायित्व भी हैं। उन्होंने विद्यार्थियों से अध्ययन पर जोर देने और नए कौशल सीखने की बात कही।

सेंसर टेक्नालॉजी पर चिराग जैन ने कहा कि मीडिया क्षेत्र से जुड़ी तकनीक का बेहद विकास हुआ है। पिछले कुछ दशकों में यह यात्रा प्रिंट मीडिया से होती हुए बेहरीन कैमरों और ड्रोन तकनीक तक विस्तृत हो गई है। ड्रोन तकनीक का समाज में उपयोग बढ़ रहा है। इस क्षेत्र में काफी संभावनाएं हैं। उन्होंने अपने स्टॉर्टअप से जुड़े अनुभवों को भी साझा किया। अधिवक्ता शिखा छिब्बर ने भारतीय न्‍याय संहिता के नवीन पहलुओं पर अपना संबोधन दिया। नए कानूनों का उद्देश्य हर आम आदमी को न्याय देना है। उन्होंने बताया कि मीडिया के विद्यार्थियों के लिए नए कानूनों और उनके प्रावधानों का जानना बहुत जरूरी है।

विश्वविद्यालय की पूर्व छात्रा और वर्तमान में कालिंदी कॉलेज, नई दिल्ली की एसोशिएट प्रोफेसर डॉ. निधि अरोड़ा ने विश्वविद्यालय से जुड़े अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने कहा कि सफलता हमेशा आपका साथ देगी जब आप पूरी सामर्थ्य से उसे करेंगे। सिनेमा अध्ययन विभाग की पूर्व छात्रा और फिल्मकार सरिता चौरसिया ने फिल्म की दुनिया में कॅरियर कैसे शुरू करना और विश्वविद्यालय से जुड़े अपने अनुभवों पर अपने विचार रखे।

 मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष अशोक पांडे ने कहा कि अधिकार एवं कर्तव्य एक साथ होते हैं, सत्य को समाज के सामने बिना किसी रंग के रखना पत्रकारों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। समाज के धर्म का पालन करना पत्रकारों का उत्तरदायित्व है इस अवसर पर कुलगुरु विजय मनोहर तिवारी ने कहा कि हमारे जीवन में कदम कदम पर हमें चौंकाता है। जीवन चमत्कृत करने वाली कई घटनाओं से भरा हुआ होता है।
 उन्होंने आह्वान किया कि आगामी 20 वर्षों में देश स्वाधीनता के 100 वर्ष पूरे करेगा और इस दौरान विकसित भारत का स्वप्न युवा विद्यार्थियों के योगदान से ही पूरा हो सकता है।

 वर्ष 2025 में फिल्‍म प्रोडक्‍शन के स्‍नातकोत्‍तर पाठ्यक्रम में प्रथम स्‍थान प्राप्‍त करने वाले विद्यार्थी उत्‍सव ठाकुर को स्‍व. अनिल चौबे स्‍मृति पदक एवं 21000 रुपये की राशि प्रदान की गई। इस अवसर पर आराधना चौबे उपस्थित थीं। संचालन डॉ. गजेन्‍द्र अवास्‍या, डॉ. सुनीता द्विवेदी, राहुल खडि़या द्वारा किया गया। इस दौरान विभागाध्‍यक्ष प्रो. पवित्र श्रीवास्‍तव, डॉ. मोनिका वर्मा, प्रो. मनीष माहेश्‍वरी एवं समस्‍त विभागाध्‍यक्ष, शिक्षक एवं अधिकारी उपस्थित थे। अंत में आभार विश्वविद्यालय की कुलसचिव प्रोफेसर पी. शशि कला ने किया।

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